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रविवार, 24 जुलाई 2011

एक्स - प्यार


अरुण से मेरा रिश्ता किसी नाम का मोहताज नही था , मेरा मानना था कि प्यार दिल से किया और निभाया जाता  है , इसके लिये यह जरूरी नही कि हम किसी बंधन में बंधे ।

ऐसा नही था कि हम दोनो शादी करना नही चाहते थे , मगर अगर हमारे मिलने से हमारे अपनों को तकलीफ मिलती है तो इससे अच्छा है कि हम एक दूसरे से दूर ही हो जाये । अरुण के पिता ने अपना फैसला सुना दिया था - अगर तुम्हे दीप्ती से शादी करनी है तो फिर तुमको इस घर से जाना होगा । अरुण उस दिन अपने पापा से लडाई करके मेरे घर आया था , मुझसे कहने लगा कि मै घर छोड कर आया हूँ । तब बहुत मुश्किल से मैने उसे समझा कर उसे घर भेजा और पिता जी की मर्जी से शादी कर लेने की कसम भी दी थी । मुझे विश्वास था कि हमारा प्यार जैसा आज है कल भी रहेगा और हमेशा रहेगा । बहुत कोशिश करने के बाद अरुण ने दिवा से शादी की थी , आज उसकी शादी को दो महीने हो चुके थे , हमारे प्यार मे मुझे कभी कोई अंतर महसूस नही होता था ।

मै आफिस में बैठी अपने और अरुण के साथ बीते दिनों की याद में खोई सी थी कि तभी मल्होत्रा जी की आवाज मेरे कानों मे पडी - देखते है दुबे जी , अपने अरुण की तो लाटरी लग गयी दोनो हाथों से लड्डू खा रहे है , फिर मेरी तरफ हल्का सा इशारा करते हुये बोले यही तो है अपने अरूण का एक्स प्यार । शादी कर ली मगर आज भी ............... आगे के शब्द मेरे कानों को सुनाई नही दिये या मेरी सुनने की क्षमता ने जवाब दे दिया था । क्या दुनिया में प्यार की यही परिभाषा बची थी ।
अच्छा ही हुआ जो राधा इस कलियुग में नही जन्मी वरना लोग आज उनकी पूजा नही करते सिर्फ शब्दों मे बाण ही चलाते । कोई भला कैसे समझाये कि प्यार कभी एक्स नही होता , प्यार तो बस प्यार होता है । जो सिर्फ निभाया जाता है , जो बंधनों का मोहताज नही होता ।


गुरुवार, 21 जुलाई 2011

ऐसा क्यों हुआ ?????



सच्ची मोहब्बत एक आरजू बन कर ही रह गयी ।
उनकी यादें हमारी जिन्दगी की वजह बन गयी ॥


जिन आंखो में बसते थे तुम काजल बनकर ।
आज उन नैनों को अश्कों से ही चाहत हो गयी ॥


धडकता था दिल जिनके नाम लेने से ही कभी ।
आज धडकनों को दिल से ही बगावत हो गयी ॥


मेरे कदमों तले यूँ तो है जमाने भर की खुशी ।
मगर मेरे होठों को हंसी से ही नफरत हो गयी ॥


रात कहती है सजा ले कोई ख्वाब इन आँखों में ।
मगर आँखों को तो जागने की आदत हो गयी ॥


जख्म भर जाते है सभी इक दिन वक्त के मरहम से ।
मगर हमे जख्मों की हरियाली की ही हसरत हो गयी ॥


बुधवार, 13 जुलाई 2011

है चार दिन की जिन्दगी


है चार दिन की जिन्दगी
और करने हजारों काम है ,
फिर भी लोगों को सदा
दूजे के कामों से ही काम है .............

रूठ कर मना लो उन्हे

जो प्यार करते है तुम्हे
कल के भरोसे में तो फिर

बस उदासी भरी कई शाम है...................

जाने कितना वक्त खोया तुने
अपने पराये को समझने में

पर एक ही पल में यहाँ
मिट जाते रिश्तों के नाम हैं.....................

खुशियों को पाने के लिये हैं खोई
जिन्दगी की लाखों खुशी

है हाथ खाली आज भी मगर

ढल गयी जिन्दगी की शाम है ........................
यूँ तो सब बिकता ही है

बेजान दुनिया के बाजार में
पर खरीद पाया कौन वफा

जो कीमती मगर बेदाम है ....................


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