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रविवार, 30 जनवरी 2011

लघुकथाः भिखारी


पिछले चार साल मै शायद ही कोई दिन ऐसा हुआ होगा जब मै मन्दिर नही गया हा । रोज की दिनचर्या में शामिल था , सुबह आफिस जाने से पहले मन्दिर जाना और सीढियों से उतरते समय उसे एक का सिक्का देना । मेरी तनख्वाह के २५ रुपये उसी के नाम थे । कभी एक से ज्यादा ना मैने दिया ना उसने कभी कुछ कहा । जैसे मैन्दिर में भगवान का स्थान नियत था उसी तरह मन्दिर के बाहर उसका । एक अजीब सा रिश्ता बन गया था मेरा उसके साथ । कभी भी कोई कामयाबी मिलती तो ऐसा लगता जैसे उसमे उसकी दुआओं का भी असर है । कल मेरा प्रोमोशन हुआ था , पता नही क्यो आज मेरे हाथ से पाँच का नोट उसको देने के लिये निकल गया । आज उसके लिये मन मे अजीब सी आत्मीयता का अनुभव हुआ । मैने उसको अपनी तरक्की के बारे में बताया और यह भी कहा कि इसमें आपकी दुआओं का भी असर है । फिर मैने कहा- बाबा मै कई सालो से यहाँ आ रहा हूँ , और हमेशा आपको इसी जगह पर देखता हूँ, आप रोज सबसे पहले मन्दिर कैसे आ जाते हो , आपको कभी देर नही होती । इससे पहले कि वो मुझे जवाब देते , एक आदमी ने आकर पर्ची काटते हुये कहा – निकालो इस महीने का किराया ।फिर थोडा सा मुस्कुराते हुये बोला – अगले महीने टेन्डर पडने है ,तेरी इस जगह पर बहुत लोगों की निगाहें है । मै बिना कुछ कहे चुपचाप चल दिया , मुझे मेरे सवाल का जवाब मिल चुका था।

बुधवार, 26 जनवरी 2011

भारतीय गणतन्त्र का संकल्प

आप सभी को गणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें । आज देश ने कुछ मामलों में बहुत तरक्की की है , हमारी दुनिया में एक पहचान बनी है , लोग हमे सम्मान की दृष्टि से देखते हैं , किन्तु इसी के साथ हमने (हमारे कुछ भारतीयों) ने इसकी छवि को धूमिल करने के प्रयास भी किये है , आज जब भ्रष्टाचार की बात दुनिया के किसी भी कोने मे होती है तो वहाँ पर अपने देश का नाम भी आ जाता है , जो हमारे लिये बहु्त शर्मनाक बात होनी चाहिये । हमारे शहीदों ने , बापू जी ने , भगत जी ने और भी अविस्मरणीय क्रन्तिकारियों ने कभी भी ऐसे भारत का सपना नही देखा था । हमारे संविधान की परिकल्पना ऐसी नही थी कि जिसमे दोषी लोग आराम से समाज मे घूमें और बेगुनाह सजा भुगतें । शायद आज हमारा देश जिस बुलंदी पर होना चाहिये था नही है , हम सभी अपने देश के , भारत माँ के गुनहगार है । अब भी समय है , हमे सचेत हो जाना चाहिये । जब तक देश का भविष्य उज्जवल नही , किसी भारतीय का भविषय उज्जवल नही हो सकता । आज गणतंत्र दिवस के इस पावन दिवस पर हम सभी को एक संकल्प लेने की आवश्यकता है । इसे सिर्फ चंद पंक्तियां समझ कर ना पढें । जीवन मे अमल करने की भी कोशिश करें। तभी आज के दिवस को मनाने की सार्थकता है

भारतीय गणतन्त्र का संकल्प

" हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को :सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखण्डता सुनिश्चित करनेवाली बंधुता बढाने के लिए दृढ संकल्प होकर आज तारीख 26 जनवरी २०११  को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।”

जय हिन्द जय भारत

रविवार, 23 जनवरी 2011

ओढे चूनर…………




नील गगन के तले धरा पर
पीली चादर सरसों की
ओढे चुनरिया मानो बिरहन 
राह निहारे प्रियतम की



सुध बुध खोई ,मगर ना खोई
आस अभी तक मिलने की ।
प्रभु के नाम सी जपती रहती 
माला वो तो  साजन की ॥
सता रही है बनकर बैरन
पवन ये देखो अगहन की
ओढे चूनर …………….

कह के गये थे आ जाओगे
तुम दो चार महीनों में ।
कसम भी ये दे कर गये थे
आँसू ना लाना नयनों में ॥
याद नही आती क्या तुमको
घर आँगन या बगियन की
ओढे चूनर…………


बुधवार, 19 जनवरी 2011

मुझे पूर्ण कर दो !!!

तमन्ना ने एक दिन हौसले से कहा – सभी कहते हैं मै अधूरी हूँ , और ये सच भी है । तुम्हारे बिना मै पूर्ण हो ही नही सकती तुम्हारा साथ पा कर ही मेरा अस्तित्व है । मुझे अपना साथ दे कर मुझे पूर्ण बना दो । हौसले ने कहा- नही , तुम मौसम के साथ बदलती रहती हो तुम अगर बदल जाओगी तो मै बिल्कुल  टूट जाऊँगा । तमन्ना ने कहा – मै तुम्हे वचन देती हूँ मै जीवन के किसी भी मोड पर तुम्हारा साथ नही छोडूंगी , मगर तुम भी जीवन के अन्तिम छोर तक मुझे अपना साथ दोगे । मै तुम्हारा जीवन सवांर दूंगी । हर खुशी जो तुम चाहोगे तुम्हारे कदमों में होगी । हौसले ने बढ कर तमन्ना का हाथ थाम लिया । धैर्य की धरा और उम्मीदो के आसमां तले ये एक अद्भुद मिलन हो रहा था और  आशाओं के जुगनू खुशी से सारी धरती को इस तरह प्रकाशित कर रहे थे  कि गगन के तारों को भी अपनी रौशनी फीकी सी मालूम पडने लगी ।

गुरुवार, 13 जनवरी 2011

कह दो साथी मन की बात...........





आधी रैना बीत गयी है 
और बची है आधी रात ।
अब तो तोड के हर खामोशी
कह दो साथी मन की बात ॥

तेरी चंचल आखों की तिरछी
चितवन में छुपे हैं राज कई ।
तेरी पायल की छमछम में
बसते सरगम के राग कई ॥
अब तो परिभाषित कर दो
जो दिल में है तेरे जज्बात
आधी रैना ……………

तेरी खामोश निगाहों में 
अपना बिम्ब मैं बुनता हूँ ।
तेरे दाडिम से अधरों से
खुद को ही मैं सुनता हूँ ॥
अब तो मरुभूमि से हदय पे
प्रीत की कर दो बरसात
आधी रैना……….

सोमवार, 10 जनवरी 2011

अश्क

कभी आँखो में सूख गये ,कभी नैनों से छलक गये ।

बिन बोले ही अक्सर ये , राज दिल के कह गये  


खुशी में नम जब आँख हुयी ,जज्बातों की सौगात  हुयी ।

रिश्तों की तपती गर्मी में, दो बूँदें सावन की बरसात हुयी ॥


कई बार जब दिल रोया, पर आँख मे ना इक आँसू आया ।

सूखे अश्कों  ने दिल में बस,  अकेलेपन मे साथ निभाया ॥


अश्क सदा तो बहते नही ,दिल मे भी अक्सर बसते है ।

चीख चीख कर ही नही ,खामोशी से भी तो कहते है ॥


अश्क सा सच्चा साथी ,मुश्किल से किसी को मिलता है ।

जो हमारी खुशी मे हँसता है, और गम में मिल कर रोता है ॥


हर एक अश्क की अपनी एक दास्ता होती है ।

कभी बिछडने पर तो कभी मिलन पर रोती है ॥

ये अश्क जो चित्र में है ये खुशी का है या गम का ,
ये जुदाई के दर्द का है या मिलन की खुशी का ।
ये टीस है दिल की या या महज बूँद है पानी की ,
 ये सवाल प्रतीक्षा कर रहा है आपके जवाब का ॥






शुक्रवार, 7 जनवरी 2011

उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प बना "पलाश"

राज्य सरकार ने पलाश को उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प घोषित कर दिया है। इस संबंध में वन विभाग ने शासनादेश जारी कर दिया है। राज्य वन्य जीव बोर्ड ने आठ सितंबर 2010 को प्रदेश सरकार से पलाश को राज्य पुष्प घोषित करने की सिफारिश की थी। उत्तराखंड के प्रदेश से अलग होने से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश का राज्य पुष्प ब्रह्मकमल था। यह फूल 10 हजार फीट या उससे अधिक ऊंचाई पर उत्तराखंड में ही मिलता है। प्रदेश के विभाजन के बाद ब्रह्मकमल उत्तराखंड का राज्य पुष्प बन गया। सन् 2000 में प्रदेश के विभाजन से लेकर अब तक उप्र का अपना कोई राज्य पुष्प नहीं था। राज्य पुष्प के चयन को लेकर यदि गफलत न होती तो पलाश के फूल को यह दर्जा शायद पांच साल पहले मिल गया होता। राज्य पुष्प के चयन में इसलिए भी लेटलतीफी हुई क्योंकि इस मामले में पैरोकारी करने के लिए पिछले कई वर्षों से प्रदेश में राज्य वन्यजीव बोर्ड का गठन ही नहीं हो पाया था। 18 जुलाई 2005 को राज्य वन्य जीव बोर्ड की बैठक में पलाश को राज्य पुष्प घोषित करने की संस्तुति की गई थी। बैठक में यह भी कहा गया कि पलाश को उप का राज्य पुष्प घोषित करने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि यह किसी अन्य प्रदेश का राज्य पुष्प तो नहीं है। यदि ऐसा हो तो पलाश की बजाय जंगली हल्दी के फूल के नाम पर विचार किया जाए। वन विभाग ने जब इसकी पड़ताल की तो पता चला कि पलाश को झारखंड का राज्य पुष्प घोषित किया जा चुका है। यह पता चलने पर राज्य पुष्प के लिए राज्य वन्यजीव बोर्ड के निर्णय के क्रम में जंगली हल्दी के फूल के नाम पर भी विचार किया गया था। इस संबंध में जानकारी हासिल करने पर पता चला कि प्रदेश में जंगली हल्दी के पौधे सिर्फ वन क्षेत्रों तक ही सीमित हैं। जंगली हल्दी की जड़ों का औषधीय महत्व तो है, लेकिन इसके पुष्प की विशेषता को लेकर प्रामाणिक जानकारी नहीं उपलब्ध थी। बाद में यह भी पता चला कि एक ही पुष्प को देश के कई प्रदेशों में राज्य पुष्प का दर्जा हासिल है। मिसाल के तौर पर कमल को हरियाणा, जम्मू कश्मीर, कर्नाटक व उड़ीसा के राज्य पुष्प का दर्जा प्राप्त है।


भीषण गर्मी व ठंड में भी मुस्कराता "राज्यपुष्प"

आखिर क्यों न बनता राज्यपुष्प पलाश। उसमें हाड़कंपाऊ ठंड में मुस्कराते रहने की क्षमता है तो तन जलाने वाली गर्मी में भी हंसते रहने की ताकत। वह औद्योगिक रूप से लाखों लोगों का पेट भरता है, औषधि के रूप में बीमारी दूर भगाता है तो करोड़ों लोगों के जीवन में रंग भी बिखेरता है। इसीलिए अब होली पर ही नहीं हर रोज सिर माथे रहेगा पलाश। राज्यपुष्प घोषित पलाश को बुधवार को पूरा प्रदेश अतिरिक्त सम्मान भाव से देख रहा है। हरी किसी में उत्सुकता है कि आखिर पलाश में ऐसा क्या है जो उसे इतना ऊंचा दर्जा मिला? पलाश कोई छुईमुई समुदाय का नहीं जो छूते ही शर्म से मुरझा जाए। उसमें जहां पलाश 45 से 48 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में भी फूलता है वहीं 3 से 18 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान में भी अपना आकर्षण बनाए रखता है। वह खुले प्रकीर्ण वनों में होता है, तो इसे प्यार से पौधारोपण करके भी उगाया जा सकता है। वैसे तो पलाश (अंग्रेजी का ब्यूटिया मोनो स्पर्मा), जिसे कुछ अंचलों में ढाक भी कहा जाता है, का फूल कवियों, चित्रकारों, वैद्यों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है। सुर्ख लाल, सफेद, गुलाबी (हल्का) व पीला के रंगों में मिलने वाला राज्यपुष्प को डाक टिकट में राष्ट्रीय स्तर पर महत्व मिल चुका है। वैसे तो यह भारत के लगभग सभी प्रदेशों में पाया जाता है परंतु राज्यपुष्प घोषित होने से प्रदेश में मिर्जापुर व सोनभद्र सहित पूरे विंध्याचल क्षेत्र तथा बुंदेलखंड के सभी जनपदों में उसकी उपस्थिति बहुतायत है। यह क्षेत्र राज्यपुष्प के पोषक होने का गर्व कर सकते हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (सीएसए) के औषधीय पादप विकास योजना के मुख्य अन्वेषक डॉ. कौशल कुमार कहते हैं, होली में जिस टेसू के फूलों से रंग तैयार होता वह कोई और नहीं पलाश ही है। अब वह होली पर ही नहीं हर रोज हमारे सिर माथे पर रहेगा। मूत्रावरोध, चर्मरोग, ज्वर, सोरायसिस, गर्भादान रोकने, नेत्र ज्योति बढ़ाने, जल्दी बुढ़ापा न आने देने के लिए तो लाभकारी है ही, लाख व रंग तैयार करने का औद्योगिक लाभ भी देता है पलाश।

मैने आज से करीब तीन महीने पहले  अपने भाई आशीष से एक पलाश का पेड लगाने की इच्छा जाहिर की थी , हम बहुत मुश्किल से कल्यानपुर नर्सरी से इसे लाये थे और अपने घर के सामने पार्क में जब पलाश का पेड लगाया । तब मुझे नही पता था कि इसे भविष्य में इतना बडा गौरव मिलने वाला है । चूंकि मेरे ब्लाग का नाम पलाश है , ये मुझे सदा से प्रिय रहा , इसलिये मैने इसे लगाया भी था ।  मगर आज मुझे खुशी के साथ गर्व भी है कि अपने राज्य के इस गौरव की खुशबू से हमेशा हमारा पार्क महकेगा ।


जमाने की उलझी राहों में , पहचान बने आसान नही । 
जो महके महंगे गुलदस्तों में , तो वो पलाश की शान नही ॥ 

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

रुधिर


आज वो ऐसे धर्मसंकट में थी जहाँ एक तरफ उसके पति की अंतिम इच्छा थी तो दूसरी तरफ पति का ही वचन था किसे वो ज्यादा महत्व दे , बस इसी निर्णय पर पहुँच की कोशिश में वो समय के उस मोड पर पहुँच गयी जहाँ पर उसने अपने नये जीवन की नींव रक्खी थी । करीब ३० साल पहले जब वो और आकाश गर्मी की छुट्टिया बिताने नैनीताल जा रहे थे कि रास्ते में अचानक हमारी कार के सामने एक बूढी सी औरत आ गयी थी जिसकी गोद मे एक दो या तीन महीने का बच्चा था । हम कार से तुरन्त ही उतर कर उसके पास गये थे वो वृद्धा अपने जीवन की आखिरी सांस ले रही थी , हम लोग कुछ करते उससे पहले ही तो उसने उस बालक को मेरी गोद में डाल कर कहा था- बिटिया इसका मेरे सिवा कोई नही , माँ जनम देते ही चल बसी , बाप उसके गम में चल बसा । और मेरा भी समय लगता है पूरा हो रहा है । इसको आसरा दे देना , भगवान तुम लोगो को सुखी रक्खे । और देखते ही देखते उसने दम तोड दिया था । हमे कुछ समझ नही आ रहा था । हमारी शादी को पाँच साल हो गये थे मगर अब तक मेरी गोद सूनी ही थी , और आज अचानक इस तरह से मेरी गोद में एक बालक आ गया था । मैने तुरन्त ही उसको पालने का निर्णय ले लिया था । मगर आकाश चुप थे । हम उस बच्चे को लेकर घर वापस आ गये थे । पूरे रास्ते आकाश कुछ भी नही बोले थे । घर आकर भी हमे एक हफ्ता हो चुका था । मुझे लगने लगा था कि आकाश भी उस बच्चे को स्वीकार कर चुके है । अस्पताल से आज वो जल्दी लौट आये थे , मै चाय बना कर ले गयी तो बोले – विनी मै सोच रहा हूँ कि इसे किसी अनाथालय मे दे आते है , यह सुनते ही मै कुछ बोलती इससे पहले ही उन्होने कहा पहले मेरी पूरी बात तो सुन लो कह कर उन्होने अपनी बात को आगे बढाया- विनी मुझे पता है तुम चाहती हो कि इस बच्चे को हम ही पाल ले , मगर ये एक दो दिन की नही पूरी जिन्दगी की बात है । आज हमारे कोई औलाद नही है इस लिये हो सकता है तुम इसे बहुत प्यार दो , मगर क्या हम अपना बच्चा होने के बाद भी इसे आज जैसा ही प्यार देंगें । क्योकि आज यह कुछ नही जानता , कल मगर इसे यह अहसास हुआ कि यह पराया है तो उस दिन मै अपने को कभी माफ नही कर पाऊँगा । आकाश मै तुमसे वादा करती हूँ मेरी ममता में कभी भेद नही आयगा । मै इसे कभी यह पता भी नही चलने दूँगी कि यह हमारा बेटा नही । मेरी इस बात के आगे आकाश ने फिर कोई विरोध नही किया था । बस मुस्कुराते हुये इतना ही कहा था-  ठीक है तो हम रुधिर के आने की बहुत बडी सी पार्टी की तैयारी करते है । अचानक ही उन्होने उस बच्चे को इतना खूबसूरत नाम भी दे दिया ।
धीरे धीरे समय बीतता गया और हम तीन से चार हुये । रुचिर और रुधिर कब बडे हो गये हमे पता ही नही चला । रुधिर अपने पापा की इच्छा को पूरी करने के लिये डाक्टर बन गया और रुचिर ने इंजीनियरिंग को चुना । रुधिर ने पापा का नर्सिगं होम पूरी तरह से संभाल लिया था । और रुचिर ने विदेश मे एक प्रतिष्ठित कम्पनी में नौकरी ज्वाइन कर ली थी । 
आज हम दोनो रुचिर को लेने एयरर्पोर्ट ही तो जा रहे थे कि हमारी गाडी का एक्सीडेंट हो गया था । देखते ही देखते सब कुछ बिखर गया था । अस्पताल में सभी डाक्टरो ने जवाब दे दिया था । कल तक जो सबकी जिन्दगी बचाने में जुटा रहता था , आज वो ही लाइलाज हो गया था । मगर रुधिर ने अभी भी आस नही छोडी थी , ना जाने किन किन डाक्टरों से लगातार वो बात कर रहा था । माँ आप पापा के पास बैठों , मै कुछ करता हूँ पापा को कुछ नही होगा । कह कर वो किसी डाक्टर के पास गया था  कि आकाश को होश आ गया , मुझे लगा अब सब ठीक हो जायगा । तभी आकाश ने अपनी टूटती हुयी आवाज में मुझसे कहा – विनी मैने कभी रुधिर और रुचिर में भेद नही किया , मगर मै चाहता हूँ कि मुझे मुखाग्नि मेरा पुत्र ही दे । और यह कहते ही आकाश तो स्वच्छंद आकाश में अनन्त यात्रा पर चले गये थे , किन्तु मुझे एक ऐसी परीक्षा में डाल दिया था जिसका हल मुझे मिल ही नही रहा था । आकाश ने हमेशा हर मोड पर साथ दिया था और आज मुझे ऐसे मोड पर छोड कर गये थे जिसके चारो तरफ अंधकार के सिवा कुछ नही था । रुधिर को उन्होने हमेशा अपने पुत्र सा ही प्यार दिया था , फिर ऐसा उन्होने क्यो कहा । 
रुधिर ने कभी आकाश की किसी भी बात का उल्लंघन नही किया था , हर इच्छा का सम्मान किया था । रुधिर ने हमेशा पुत्र का हर कर्तव्य निभाया था , फिर क्या मै उससे यह अधिकार छीन सकती थी ।कही ऐसा तो नही कि आकाश रुधिर की ही बात कह रहे थे , कही उनको यह तो नही लगा होगा कि मै शायद रुधिर को यह अधिकार ना दूँ इसलिये वो यह कह रहे थे । हाँ शायद यही बात रही होगी । जब अपने पूरे जीवन मे उन्होने कोई भेद नही किया था , और मुझसे भी ऐसा करने का वचन लिया था , तो वह ऐसा कैसे कह सकते थे । हमेशा उन्होने रुधिर को ही अपना जेष्ट पुत्र समझा था , तो अगर आज वो रुचिर की बात कर भी रहे हो तो भी उनकी ये इच्छा मुझे उनकी सारी उम्र के त्याग और रुधिर के प्रति उनके अपनत्व के सामने बहुत छोटी सी प्रतीत हुयी । भले ही रुधिर की नसों मे इनका रक्त ना बह रहा हो मगर आकाश की आदते संस्कार और सांसे उसमे ही तो बसती थी ।



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