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रविवार, 29 मई 2016

हर मौसम तेरा बनना है


मनमीत मेरे, साथ तेरे, कदम मिला कर चलना है
कभी धूप कभी छाँव बन, हर मौसम तेरा बनना है

जीने को तो जी लेते, बेंमतलब से इस जीवन को
कुछ रोते हसते पा ही लेते, आधे अधूरे सपने को
तेरी नजरों में बस कर , ख्वाब तुम्हारा बनना है
कभी धूप कभी छाँव बन, हर मौसम तेरा बनना है

कैसे बना दिल धीरे धीरे , तेरा दीवाना क्या जानूं
सोच लिया रस्मों रिवाज, दुनिया के मैं ना मानूं
अब हाथों में हाथ लिये, अरमान तुम्हारा बनना है
कभी धूप कभी छाँव बन, हर मौसम तेरा बनना है

मेरे प्यासे तन न पर, जब से पडी छाया तेरी,
खिल गयी मुरझाई कली, फूल बनी काया मेरी
तेरी सांसों को राग बना, संगीत तुम्हारा बनना है
कभी धूप कभी छाँव बन, हर मौसम तेरा बनना है
To watch video click on Palash the Name of Love
https://www.youtube.com/watch?v=xBdA8RaP9Kk

शुक्रवार, 27 मई 2016

क्यों नही बदल रहा...........


कभी कभी लगता है जैसे, कुछ नही बदल रहा
आज भी हर तरफ इंसान, इंसा्न को छल रहा

बातों में सबकी तडप दिखती, है सब बदलने की
कर्मो में चुप चाप सर्प सा, डस लेने को मचल रहा

प्रेम प्रीत की बात करते, थकते नही व्याख्यान में
जाति धर्म की आड में, व्यवस्था को ही निगल रहा

खो गयी शर्मो हया , सूख गया आँखो का पानी
देख कर सुन्दरी, सुरा, आचरण भी फिसल रहा

अत्याचार दुराचार आम हुआ, सभ्यता के दौर मे
चीत्कार, सुन-सुन, पशुओं का दिल भी दहल रहा

छल कपट के मन को ढकते, दिखावटी मुस्कान से
रिश्तों का गर्म लावा, लालची ,बर्फ पर पिघल रहा

धोखे मक्कारी के  खेल मे, उलझा रहे है देश को
गिर- गिर कर भी क्यो नही, ये आदमी संभल रहा

सोमवार, 23 मई 2016

मौसम बदल गया.................. Some times change is painful


जाने लोग बदल गये, या मेरा नजरिया बदल गया
कुछ तो बदला है हवाओं में, कि मौसम बदल गया

कल तक रोये जिसके लिये, उसे पल मे भुला दिया
दो दिन में दिल की धडकने बदली, दिल बदल गया

मंजिल पाने की हसरत में इश्क -ओ- ईमां बदल गये
नजरों में बसा है अब भी कोई, बस चेहरा बदल गया

मुस्कारा लेते है लोग यहाँ,गम देकर किसी अजीज को
दुनिया में मोहब्बत निभाने का, अब दस्तूर बदल गया

जीना गवारां ना था कभी, देखे बिना जिस शख्स को
नाम उसका सुन क्यो आज, चेहरे का रंग बदल गया

मै बदलता तो जहाँ कहता मुझे, जालिम बेदर्द बेवफा
हुस्न ने बदली अदा अपनी तो, जमाना भी बदल गया


दिन रात की उलझन में पलाश, ना उलझा खुद को यूं
लहू का रंग लाल है अब भी, बस रक्तदाब बदल गया

बुधवार, 11 मई 2016

२१ वीं सदी में स्त्री की स्थिति का जिम्मेदार कौन?


हम औरते अक्सर बात करते हैं कि सदियों से मर्द औरतों पर अत्याचार करते आ रहे हैं। स्त्री को प्रताडित किया जा रहा है वगैरह वगैरह…… कभी किसी पुरुष को ये कहते नही सुना गया कि वो भी प्रताडित होता है। आखिर क्या है सच? समाज में आज जो भी स्थिति स्त्री की है क्या उसके लिये सिर्फ पुरुष ही जिम्मेदार है? क्या स्त्री खुद अपनी स्थिति के लिये जिम्मेदार नही?
चाहे एक पढी लिखी लडकी हो, या घरेलू लडकी, चाहे वो स्वयं अपना वर चुने या घर के सदस्य, उसके ख्वाबों में एक ऐसा लडका होता है जो उससे ज्यादा सक्षम हो, ज्यादा आत्मनिर्भर हो। क्यों चाहती है हमेशा अपने से ज्यादा? क्या उसे अपनी क्षमता पर भरोसा नही? क्यों वह समाज में यह बात गर्व से नही कह पाती कि उसे मात्र इक सच्चा और नेक जीवनसाथी चाहिये, उसे उसके स्टेटस, उसके सेलरी पैकेज, उसके बैंक बैलेंस से कोई लेना देना नही।
आदमी जानता है कि एक लडकी उसे तभी पसन्द करेगी जब वो उससे उच्च हो खास कर आर्थिक मामले में, और इसीलिये शेष जीवन वो गर्व करता है, तब स्त्री कहती है कि घर में उसकी उपेक्षा की जाती है। क्यों कोई माँ जब अपनी बहू खोजती है तो अपने पुत्र से ज्यादा योग्य लडकी को बहू के रूप में चुन नही पाती, वो चाहती है कि उसका बेटा किसी भी मामले में अपनी पत्नी से कम ना हो। यानि कि एक स्त्री दूसरी स्त्री को उच्च पदस्त नही देख सकती। एक स्त्री ही समाज मे उस लडकी के चाल चलन पर पहला प्रश्न उठाती है, जब वो काम करके घर देर से आती है या बाहर किसी पुरुष मित्र के साथ घूमती हुयी दिख जाती है। क्यों वह उस लडके के चरित्र पर कोई प्रश्न नही उठाती।
स्त्री दुखी हो तो वह रो सकती है मगर बेचारा पुरुष उसे तो समाज ने रोने का अधिकार भी नही दिया। पति से झगडा हो तो पत्नी का पहला हथियार होता है – मायके जाने की धमकी, मगर पति उसके पास क्या है?  एक आदमी जो रोज घर से बाहर काम के लिये जाता है, मेहनत करता है, कभी कभी साथ लाया हुआ टिफिन भी नही खा पाता, भाग भाग कर लोकल ट्रेन पकडता है, रास्ते में सोचता है कि जाते हुये अभी हुये भिन्डी टमाटर खरीदने है, और घर पहुँचते ही उससे कहा जाता है कि ये क्या आपसे तो ठीक से सब्जी भी नही लायी जाती, ज्रा सी चीज याद नही रहती, खुद से ये भी नही होता कि धनिया मिर्च भी लेते आते। मगर बेचारा आदमी घर की सुख शान्ति बनी रहने के लिये बस मुस्करा कर कह देता है – देवी जी कल ध्यान से लेता आऊंगा। चलो एक कप चाय बना दो।
और यही पुरुष अगर गलती से थकान के कारण या आफिस की परेशानी के कारण गुस्सा हो जाय तो फिर तो घर का माहौल देखने ही वाला होता है। निकल आते है सारे अचूक बाण तरकस से, मै दिन भर काम करती रहूँ, मरती रहूँ, और फिर ये गुस्सा भी देखूँ। चुप चाप पुरुष सुन ले तो बेहतर वरना तो रोना तय ही है। फिर कहाँ खाना कहाँ चाय।
क्यों हम नही समझ पाते पुरुष मन, उसकी परेशानियां, क्यों नही समझ पाते कि वो घर के लिये उतना ही करता है जितना हम स्त्रियां। बहुत सारी बातें है, जिन पर विचार करना होगा। पुरुष सदैव स्त्री को दबाता नही, उसको पूजता भी है, उसका उपकार भी मानता है। और कई बार स्त्री खुद को पुरुष से ऊपर देखने का साहस नही जुटा पाती। पुरुष मन चाहता है एक ऐसी स्त्री जो उसका सम्बल बने, मुश्किल समय में उसे धैर्य दे। हम स्त्रियों को अपने नजरिये में बदलाव लाना होगा। ये बदलाव ही हमारी मजबूत पहचान बनायेगा।  

शनिवार, 7 मई 2016

यही जिन्दगी है ........Its Life


कई बार मन खिन्न हो जाता है
लगता है एक मै ही हूँ, जो परेशान है
मेरे ही पास बहुत काम है
मुझे कुछ ऐसा नही मिला, जिसके लिये खुश रहूँ
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कई बार दिल उदास हो जाता है
जीने का एक भी कारण नही मिलता
दिल करता है काश, ऊपर वाला मुझे उठा ले
नही जीना अब और मुझे, किसके लिये जियूँ
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कई बार कही दूर भागने को दिल करता है
वहाँ जहाँ कोई ना हो, कोई शिकायत नही
किसी का बन्धन नही, कोई मजबूरी नही
आखिर कब तक लोगो को खुश करती रहूँ
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मगर आज तक
ये भाव स्थिर नही हो सके
हर बार, मुझे मिल ही गयी
जीने की वजह
किसी अपने का साथ
खुश रहने का कारण
हर बार, मुझे मिल ही गयी
अपनी खोई चाहत
कुछ कर गुजरने का जज्बा
किसी की कैद में खुशी
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शायद यही जिन्दगी है
भावो का उतार चढाव
मन का बिखरना संभलना
निराशा के छोर से लौट आना
फिर डूब जाना अपने आपमें
कभी कभी रोना भी दे जाता है नयी ताकत
बहते आंसू ले जाते है नकारात्मक भाव
धुली आँखे फिर दिखाती है नये सपने
हाँ यही जिन्दगी है...........................

शुक्रवार, 6 मई 2016

मेरे महबूब


महबूब मेरे सांसों के रहते,  जुदा नही हो सकती हूँ
रूठ जाऊँ कुछ पल को, पर खफा नही हो सकती हूँ

चाहा तुमने मुझको, ये मुझपर है अहसान तेरा
साथ मेरी सांसो के जो, साथी है अहसास तेरा
तेरी आरजू न बन पाऊं, खता नही हो सकती हूँ

तुमसे रौशन मेरी राहें, तेरे दम से खुशियां मेरी
तेरी बाँहे, घर है मेरा, मुझमें बसती दुनिया मेरी
चिराग की मद्धिम लौ सी,ज़िया नही हो सकती हूँ

तेरे जैसी बन पाऊँ, कोशिश मै दिन रात करूँ
मेरा मकसद तेरी धडकन बन, मै तेरे साथ रहूँ
इल्म मुझे खामियों का, खुदा नही हो सकती हूँ

तकरार तुम्ही से है करनी, तुमसे ही मेरा इकरार
तेरे बिन जो पल बीते, हर उस लम्हे से इन्कार
करूं नादानियां ये मुंकिन, बेवफा नही हो सकती हूँ

महबूब मेरे सांसों के रहते,  जुदा नही हो सकती हूँ

रूठ जाऊँ कुछ पल को, पर खफा नही हो सकती हूँ

ज़िया---- रौशनी 
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